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Showing posts from May, 2019

Vichaar

भगवान हर इंसान को एक जैसा बनाया है – दो हाथ, दो पैर, दो आँखे, दो कान और एक बहुत ही शानदार मस्तिष्क (दिमाग)| लेकिन हर व्यक्ति की जिंदगी अलग-अलग होती है| कुछ व्यक्ति जिंदगी की यात्रा में निरन्तर रूप से सफलता प्राप्त करते जाते है और वही कुछ व्यक्तियों की जिंदगी निराशा और दुखों के अँधेरे में ही बीत जाती है| इसका एक ही कारण है – “नजरिया – Attitude

विद्‌यार्थी जीवन

विद्‌यार्थी जीवन साधना और तपस्या का जीवन है । यह काल एकाग्रचित्त होकर अध्ययन और ज्ञान-चिंतन का है । यह काल सांसारिक भटकाव से स्वयं को दूर रखने का काल है । विद्‌यार्थियों के लिए यह जीवन अपने भावी जीवन को ठोस नींव प्रदान करने का सुनहरा अवसर है । यह चरित्र-निर्माण का समय है । यह अपने ज्ञान को सुदृढ़ करने का एक महत्त्वपूर्ण समय है । विद्‌यार्थी जीवन पाँच वष की आयु से आरंभ हो जाता है । इस समय जिज्ञासाएँ पनपने लगती हैं । ज्ञान-पिपासा तीव्र हो उठती है । बच्चा विद्‌यालय में प्रवेश लेकर ज्ञानार्जन के लिए उद्‌यत हो जाता है । उसे घर की दुनिया से बड़ा आकाश दिखाई देने लगता है । नए शिक्षक नए सहपाठी और नया वातावरण मिलता है । वह समझने लगता है कि समाज क्या है और उसे समाज में किस तरह रहना चाहिए । उसके ज्ञान का फलक विस्तृत होता है । पाठ्‌य-पुस्तकों से उसे लगाव हो जाता है । वह ज्ञान रस का स्वाद लेने लगता है जो आजीवन उसका पोषण करता रहता है । विद्‌या अर्जन की चाह रखने वाला विद्‌यार्थी जब विनम्रता को धारण करता है तब उसकी राहें आसान हो जाती हैं । विनम्र होकर श्रद्धा भाव से वह गुरु के पास जाता है तो गुरु

माँ को बेटी की पुकार

पहली धड़कन भी मेरी धडकी थी तेरे भीतर ही, जमी को तेरी छोड़ कर बता फिर मैं जाऊं कहां. आंखें खुली जब पहली दफा तेरा चेहरा ही दिखा, जिंदगी का हर लम्हा जीना तुझसे ही सीखा. खामोशी मेरी जुबान को  सुर भी तूने ही दिया, स्वेत पड़ी मेरी अभिलाषाओं को रंगों से तुमने  भर दिया. अपना निवाला छोड़कर मेरी खातिर तुमने भंडार भरे, मैं भले नाकामयाब रही फिर भी मेरे होने का तुमने अहंकार भरा. वह रात  छिपकर जब तू अकेले में रोया करती थी, दर्द होता था मुझे भी, सिसकियां मैंने भी सुनी थी. ना समझ थी मैं इतनी खुद का भी मुझे इतना ध्यान नहीं था, तू ही बस वो एक थी, जिसको मेरी भूख  प्यार का पता था. पहले जब मैं बेतहाशा धूल मैं खेला करती थी, तेरी चूड़ियों तेरे पायल की आवाज से डर लगता था. लगता था तू आएगी बहुत  डाटेंगी और कान पकड़कर मुझे ले जाएगी, माँ आज भी मुझे किसी दिन धूल धूल सा लगता है. चूड़ियों के बीच तेरी गुस्से भरी आवाज सुनने का मन करता है, मन करता है तू आ जाए बहुत डांटे और कान पकड़कर मुझे ले जाए. जाना चाहती हूं  उस बचपन में फिर से जहां तेरी गोद में सोया करती थी, जब काम में हो कोई मेरे मन का तुम बा

Personality

Every human being have great personalities