पहली धड़कन भी मेरी धडकी थी तेरे भीतर ही, जमी को तेरी छोड़ कर बता फिर मैं जाऊं कहां. आंखें खुली जब पहली दफा तेरा चेहरा ही दिखा, जिंदगी का हर लम्हा जीना तुझसे ही सीखा. खामोशी मेरी जुबान को सुर भी तूने ही दिया, स्वेत पड़ी मेरी अभिलाषाओं को रंगों से तुमने भर दिया. अपना निवाला छोड़कर मेरी खातिर तुमने भंडार भरे, मैं भले नाकामयाब रही फिर भी मेरे होने का तुमने अहंकार भरा. वह रात छिपकर जब तू अकेले में रोया करती थी, दर्द होता था मुझे भी, सिसकियां मैंने भी सुनी थी. ना समझ थी मैं इतनी खुद का भी मुझे इतना ध्यान नहीं था, तू ही बस वो एक थी, जिसको मेरी भूख प्यार का पता था. पहले जब मैं बेतहाशा धूल मैं खेला करती थी, तेरी चूड़ियों तेरे पायल की आवाज से डर लगता था. लगता था तू आएगी बहुत डाटेंगी और कान पकड़कर मुझे ले जाएगी, माँ आज भी मुझे किसी दिन धूल धूल सा लगता है. चूड़ियों के बीच तेरी गुस्से भरी आवाज सुनने का मन करता है, मन करता है तू आ जाए बहुत डांटे और कान पकड़कर मुझे ले जाए. जाना चाहती हूं उस बचपन में फिर से जहां तेरी गोद में सोया करती थी, जब काम...